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परमाणु ऊर्जा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता से भविष्य की ऊर्जा क्रांति

आज की दुनिया में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और ऊर्जा की बढ़ती माँग एक महत्वपूर्ण विषय बन गई है, और यह एक आवश्यक और अनिवार्य जरूरत बन गई है। हमें इस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। जैसे-जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रभाव विभिन्न उद्योगों में बढ़ रहा है, वैसे-वैसे ऊर्जा की आवश्यकता भी तेज़ी से बढ़ रही है। इस संदर्भ में, परमाणु ऊर्जा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। भारत ने हाल ही में छोटे और मॉड्यूलर परमाणु रिएक्टरों (SMR) के विकास के लिए फ्रांस के साथ समझौता किया है, जो न केवल ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देगा बल्कि भविष्य में कृत्रिम बुद्धिमत्ता संचालित डेटा केंद्रों की ऊर्जा जरूरतों को भी पूरा कर सकता है।


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कृत्रिम बुद्धिमत्ता और ऊर्जा की बढ़ती माँग

कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग डेटा सेंटर, मशीन लर्निंग, और ऑटोमेशन में बड़े पैमाने पर हो रहा है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि वर्तमान में कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित डेटा सेंटर वैश्विक ऊर्जा खपत का लगभग 2% हिस्सा लेते हैं और यह आँकड़ा आने वाले वर्षों में और बढ़ सकता है। जैसे-जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता की क्षमताएँ बढ़ेंगी, डेटा प्रोसेसिंग के लिए और अधिक ऊर्जा की जरूरत होगी। यहाँ सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इस बढ़ती माँग को बिना पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए कैसे पूरा किया जाए। यह एक तथ्य है कि कोयला और गैस जैसे पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता कार्बन उत्सर्जन को बढ़ाती है, जिससे जलवायु परिवर्तन की समस्या और गंभीर हो रही है।। यही कारण है कि हमें स्वच्छ और सतत ऊर्जा विकल्पों की ओर ध्यान देने की जरूरत है।


परमाणु ऊर्जा  एक स्वच्छ और प्रभावी समाधान

परमाणु ऊर्जा इस चुनौती का एक प्रभावी समाधान प्रस्तुत करती है। यह न केवल स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करती है, बल्कि बड़े पैमाने पर बिजली उत्पादन में भी सक्षम है। भारत और फ्रांस के बीच किए गए नए समझौतों के तहत, छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) विकसित किए जाएंगे, जो कम जगह में अधिक कुशलता से काम कर सकते हैं और सुरक्षित भी हैं। छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर का एक महत्वपूर्ण लाभ यह है कि इन्हें दूरस्थ और शहरी दोनों क्षेत्रों में आसानी से स्थापित किया जा सकता है, जिससे ऊर्जा का विकेंद्रीकरण संभव होगा। साथ ही, ये पारंपरिक परमाणु रिएक्टरों की तुलना में कम रेडियोधर्मी कचरा उत्पन्न करते हैं, जिससे इनका पर्यावरणीय प्रभाव भी कम होता है।


भारत का कदम और भविष्य की संभावनाएँ

भारत पहले से ही परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है। वर्तमान में भारत में कुल परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता लगभग 7,480 मेगावाट है, जो 2031 तक 22,480 मेगावाट तक पहुँचाने की योजना है। कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना इस विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। यह भारत का सबसे बड़ा परमाणु ऊर्जा संयंत्र है, जहाँ रूस की मदद से कुल छह यूनिट्स स्थापित की जा रही हैं। इनमें से दो यूनिट पहले ही चालू हो चुकी हैं और अन्य निर्माणाधीन हैं। यह परियोजना भारत के ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने और स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है।


हमारी भूमिका, वैज्ञानिक सोच, शिक्षा और पर्यावरण संरक्षण

एक प्रायोगिक परमाणु भौतिक विज्ञानी और विज्ञान शिक्षा से जुड़े व्यक्ति के रूप में, हमारा यह कर्तव्य बनता है कि हम वैज्ञानिक सोच और तर्कशीलता को बढ़ावा दें। हमें न केवल वर्तमान पीढ़ी बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी यह समझाने की जरूरत है कि कैसे आधुनिक तकनीकें, जैसे कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता और परमाणु ऊर्जा, समाज को आगे ले जा सकती हैं। इस संदर्भ में, छात्रों और आम जनता को सही वैज्ञानिक तथ्यों और तकनीकी विकास से अवगत कराना आवश्यक है। साथ ही, हमें पर्यावरण संरक्षण को केवल एक पाठ्यक्रम के रूप में नहीं बल्कि एक व्यावहारिक अभ्यास के रूप में अपनाने की आवश्यकता है। हमें छात्रों को पर्यावरणीय संरक्षण की आदतें अपनाने और उन्हें अपने दैनिक जीवन में लागू करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। यदि हम विज्ञान को व्यापक रूप से समझने और अपनाने की संस्कृति विकसित कर सकें, तो भविष्य में ये प्रौद्योगिकियाँ हमारे जीवन को और अधिक उन्नत और सुरक्षित बना सकती हैं।


शिक्षा प्रणाली में आवश्यक बदलाव और वैश्विक दृष्टिकोण

भारत के पास विशाल शिक्षित मानव संसाधन है, जो वैश्विक स्तर पर परमाणु ऊर्जा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में योगदान कर सकता है। हमें अपने शैक्षिक पाठ्यक्रम में बदलाव लाकर इन तकनीकों को मुख्यधारा में शामिल करने की आवश्यकता है।


·विज्ञान और इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में परमाणु ऊर्जा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के अनुप्रयोगों को अधिक विस्तार से पढ़ाया जाए।


·पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छ ऊर्जा समाधानों को केवल एक विषय के रूप में न पढ़ाया जाए, बल्कि व्यावहारिक गतिविधियों और परियोजनाओं के माध्यम से छात्रों को इन प्रयासों में सक्रिय रूप से शामिल किया जाए।


· वैश्विक दृष्टिकोण अपनाते हुए अनुसंधान और विकास में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा दिया जाए।


हम 'वसुधैव कुटुंबकम्' की भावना को अपनाकर एक ऐसे भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं, जहाँ तकनीक और स्वच्छ ऊर्जा मिलकर मानवता के सतत विकास में योगदान दे सकें।


कृत्रिम बुद्धिमत्ता और परमाणु ऊर्जा का संयोजन हमें एक स्वच्छ, टिकाऊ और ऊर्जा-समृद्ध भविष्य की ओर ले जा सकता है। जैसे-जैसे तकनीक आगे बढ़ रही है, भारत को चाहिए कि वह स्मार्ट और हरित ऊर्जा समाधानों को अपनाए। छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) इस दिशा में एक बड़ा कदम हैं और यदि इनका सही तरीके से विकास किया जाए, तो वे हमारी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में क्रांतिकारी साबित हो सकते हैं। आने वाले समय में, जैसे-जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डिजिटल तकनीकों की माँग बढ़ेगी, परमाणु ऊर्जा की आवश्यकता और अधिक महत्वपूर्ण होती जाएगी। भारत का यह कदम सही दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण निर्णय है, जो भविष्य में देश को ऊर्जा संकट से बचाने और स्वच्छ ऊर्जा की ओर ले जाने में मदद करेगा।


The author, Dr. B P singh, is a professor of experimental nuclear physics, actively contributes to the advancement and dissemination of nuclear science. With a strong commitment to public engagement, they focus on educating diverse audiences about the applications of nuclear techniques in sustainable development. Their efforts include promoting clean energy solutions, medical advancements, and environmental protection through nuclear technology, thereby bridging the gap between scientific research and societal benefits.

 
 
 

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