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परमाणु विकिरण: एक स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य के लिए क्रांति

परमाणु विकिरण, जिसे अक्सर नकारात्मक दृष्टिकोण से देखा जाता है, वास्तव में हमारे जीवन में क्रांति लाने वाली अद्भुत तकनीक है। यह विकिरण, चाहे वह सूर्य से हो, रेडियोधर्मी नाभिक से हो, या मशीनों से उत्पन्न हो, असीमित संभावनाएं रखता है। रेडियोआइसोटोप, किसी तत्व के ऐसे समस्थानिक होते हैं, जिनके नाभिक अस्थिर होते हैं और जो अधिक स्थिर रूप में बदलने के लिए विकिरण उत्सर्जित करते हैं। अपनी अनूठी पहचान क्षमता के कारण, रेडियोआइसोटोप का उपयोग ट्रेसर, ऊर्जा स्रोत, कैंसर के इलाज, और बिना नुकसान पहुंचाए निरीक्षण के लिए किया जा सकता है।

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स्वास्थ्य देखभाल से लेकर खाद्य सुरक्षा और औद्योगिक प्रगति तक, परमाणु विकिरण का प्रभाव अद्वितीय है। स्वास्थ्य क्षेत्र में, न्यूक्लियर मेडिसिन ने निदान और उपचार में क्रांति ला दी है। रेडियोफार्मास्यूटिकल्स का उपयोग शरीर के अंगों की इमेजिंग और कैंसर जैसे रोगों के इलाज में किया जाता है। थायराइड कैंसर के इलाज में रेडियोआयोडीन (I-131) का उपयोग लंबे समय से सफलतापूर्वक किया जा रहा है। 'थेरानोस्टिक्स' तकनीक, जो निदान और उपचार को जोड़ती है, व्यक्तिगत उपचार को और अधिक प्रभावी बनाती है। कैंसर चिकित्सा के लिए टेलीथेरेपी और ब्रैकीथेरेपी ने विकिरण के उपयोग को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है।


खाद्य और कृषि में, विकिरण का उपयोग भोजन को सुरक्षित और टिकाऊ बनाने में अहम भूमिका निभा रहा है। यह तकनीक कीटाणुशोधन, पकने में देरी और फसल की गुणवत्ता सुधारने में मदद करती है। विकिरण-प्रेरित उत्परिवर्तन ने मजबूत और अधिक उत्पादक फसल किस्मों के विकास को संभव बनाया है। औद्योगिक क्षेत्र में, रेडियोट्रेसर पाइपलाइनों और बांधों में रिसाव का पता लगाने और रासायनिक प्रक्रियाओं को अनुकूलित करने में सहायक हैं। पर्यावरणीय अनुप्रयोगों में, औद्योगिक कचरे के उपचार और जैव-उर्वरकों के उत्पादन में विकिरण का उपयोग किया जा रहा है।


रेडियोआइसोटोप का उत्पादन पहले मुख्य रूप से परमाणु रिएक्टरों पर निर्भर था। हालांकि, अब प्रोटॉन और भारी आयन त्वरक तकनीक से टेक्निशियम-99एम, आयोडीन-131, फ्लोरीन-18, और लुटेटियम-177 जैसे चिकित्सकीय रेडियोआइसोटोप का निर्माण भी संभव हो गया है। ये आइसोटोप निदान और चिकित्सा के लिए बेहद उपयोगी हैं। उदाहरण के लिए, टेक्निशियम-99एम का उपयोग हृदय और हड्डियों की बीमारियों की इमेजिंग में होता है, जबकि आयोडीन-131 थायराइड कैंसर के उपचार में सहायक है। फ्लोरीन-18 का उपयोग पॉज़िट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी (PET) स्कैन में होता है।


भारत में, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC), विकिरण और आइसोटोप प्रौद्योगिकी बोर्ड (BRIT), और वेरिएबल एनर्जी साइक्लोट्रॉन सेंटर (VECC) जैसे केंद्र नियमित रूप से इन रेडियोआइसोटोप का उत्पादन कर रहे हैं। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग में प्रोफेसर बी पी सिंह के नेतृत्व में रेडियोआइसोटोप उत्पादन और माप पर शोध कार्य हो रहे हैं। उनका समूह इन आइसोटोप के उत्पादन के लिए आदर्श ऊर्जा स्थितियों का निर्धारण करने और इस प्रक्रिया को अधिक कुशल बनाने पर काम कर रहा है।


रेडियोआइसोटोप और विकिरण ने न केवल मानव जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया है, बल्कि पर्यावरणीय और औद्योगिक विकास को भी गति दी है। इस प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोगों के प्रति जागरूकता बढ़ाना इसके फायदों को व्यापक स्तर पर उपयोग में लाने के लिए आवश्यक है। परमाणु विकिरण वास्तव में एक स्वस्थ, सुरक्षित और सतत भविष्य की दिशा में हमारे कदमों को मजबूती प्रदान कर रहा है।


"तो दोस्तों, न्यूक्लियर विकिरण/न्यूक्लियर एनर्जी केवल विज्ञान नहीं है—it is future for sustainable development!"


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