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प्रकाश का अंतर्राष्ट्रीय दिवस: अंधकार से प्रकाश की ओर


हर वर्ष 16 मई को प्रकाश का अंतर्राष्ट्रीय दिवस (International Day of Light) पूरी दुनिया में मनाया जाता है। यह दिवस केवल विज्ञान की एक खोज का उत्सव नहीं है, बल्कि जीवन, ज्ञान, और उम्मीद का प्रतीक बन चुका है। इस अवसर पर हम प्रकाश की उस भूमिका को समझते हैं जो वह हमारे जीवन के हर पहलू में निभाता है — चाहे वह शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, या वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हो। हमने यह कार्यक्रम यूनेस्को के सहयोग से आयोजित किया, जिसमें बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं और शिक्षकों ने सक्रिय भागीदारी निभाई।


प्रकाश केवल देखने का माध्यम नहीं है, यह जीवन का मूल आधार है। जब कोई शिशु जन्म लेता है, तो सबसे पहले उसकी आँखें रोशनी की ओर खुलती हैं। बिना प्रकाश के हम किसी वस्तु को न देख सकते हैं, न समझ सकते हैं। हमारी दिनचर्या सूर्य की रोशनी से शुरू होती है और कृत्रिम रोशनी से रात्रि का कार्य संपन्न होता है। मोबाइल की फ्लैश, लैम्प की रोशनी, या किसी दिए की लौ — सब कहीं न कहीं हमें यह बताती है कि अंधेरे में राह दिखाने वाला प्रकाश ही है।


प्रकाश केवल भौतिक रोशनी नहीं है, यह भीतर का उजाला भी है। जब किसी विद्यार्थी को पढ़ाई में असफलता मिलती है, तो वह निराश हो जाता है। लेकिन जब कोई उसे प्रेरणा देता है — “तुम कर सकते हो” — तो यही शब्द एक नई आशा की किरण बनकर उसे सफलता की राह पर ले जाते हैं। इसी प्रकार मन का अंधकार भी एक सकारात्मक सोच से दूर हो सकता है। हमारे वेदों में कहा गया है: “तमसो मा ज्योतिर्गमय” — अर्थात “मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो।” यह न केवल भौतिक अंधकार, बल्कि अज्ञानता, नफरत और निराशा से निकलकर ज्ञान, प्रेम और आशा की ओर बढ़ने का आह्वान है।


प्रकाश के महत्व का एक अनुभव लगभग दस वर्ष पहले हुआ, जब परीक्षा ड्यूटी के दौरान अचानक आंधी के कारण बिजली चली गई। पूरा कमरा अंधेरे में डूब गया था और परीक्षा रुकने की संभावना थी। परंतु, हमने तत्काल मोमबत्तियाँ जलाईं और पूरे हॉल को रोशन कर परीक्षा को सफलतापूर्वक सम्पन्न किया। यह घटना दर्शाती है कि रोशनी केवल देखने के लिए नहीं, बल्कि संकट में हिम्मत और समाधान की राह दिखाने वाली शक्ति भी है।


वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो प्रकाश विद्युतचुंबकीय तरंगों के रूप में ऊर्जा का एक रूप है, जिसकी गति लगभग तीन लाख किलोमीटर प्रति सेकंड होती है. इसका मतलब यह है कि रोशनी एक सेकंड में धरती के चारों ओर करीब 7 बार घूम सकती है! सूर्य की रोशनी इसी ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत है, जहाँ हाइड्रोजन परमाणु मिलकर हीलियम बनाते हैं और उससे उत्पन्न ऊर्जा प्रकाश के रूप में पृथ्वी तक पहुँचती है। यह प्रकाश न केवल पौधों को भोजन बनाने में मदद करता है, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को चलाता है। घरों में बल्ब जलने से लेकर सोलर पैनल तक, हर जगह प्रकाश ऊर्जा का ही चमत्कार है।


प्रकाश के कुछ अद्भुत गुण भी हैं। यह सबसे तेज़ गति से चलने वाला माध्यम है। उदाहरण के लिए, जब आसमान में बिजली चमकती है, तो उसकी रोशनी पहले दिखती है और गरज की आवाज़ बाद में सुनाई देती है, क्योंकि प्रकाश की गति ध्वनि से कहीं अधिक होती है। आज का इंटरनेट, मोबाइल नेटवर्क, और जीपीएस — सब प्रकाश की इसी तीव्रता पर आधारित हैं, जैसे कि ऑप्टिकल फाइबर के माध्यम से डेटा ट्रांसफर।


प्रकाश की एक और खासियत यह है कि यह द्वैध प्रकृति वाला होता है — यानी यह कभी तरंग (wave) की तरह व्यवहार करता है और कभी कण (particle) की तरह। जब साबुन के बुलबुले या सीडी की सतह पर रंग बदलते दिखते हैं, तो वह तरंग स्वरूप के कारण होता है। वहीं, जब प्रकाश धातु पर गिरकर इलेक्ट्रॉन निकालता है, तो वह कण स्वरूप को दर्शाता है — जिसे फोटोइलेक्ट्रिक प्रभाव कहा जाता है। इस पर आधारित सिद्धांत के लिए अल्बर्ट आइंस्टीन को नोबेल पुरस्कार भी मिला।


प्रकाश का परावर्तन (reflection) और अपवर्तन (refraction) भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। जब हम शीशे में चेहरा देखते हैं या झील में सूर्य का प्रतिबिंब देखते हैं, तो वह परावर्तन के कारण होता है। वहीं, पेंसिल को पानी में डुबाने पर उसका मुड़ना या इंद्रधनुष का बनना अपवर्तन के कारण होता है। चश्मा, कैमरा, लेंस, प्रिज़्म — सब इसी सिद्धांत पर काम करते हैं।


प्रकाश ऊर्जा का संवाहक भी है। सोलर पैनल, सूरज की रोशनी से विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। पौधे, प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया से भोजन बनाते हैं — यही प्रकृति की सबसे बड़ी प्रयोगशाला है। यहाँ तक कि मनुष्य के शरीर को भी धूप की आवश्यकता होती है — जिससे विटामिन D बनता है और प्रतिरक्षा प्रणाली सशक्त होती है। आज LEDs, लेज़र और सोलर लाइट्स जैसे प्रकाश स्रोत न केवल ऊर्जा की बचत करते हैं, बल्कि पर्यावरण को भी प्रदूषण से बचाते हैं। यह साफ और टिकाऊ ऊर्जा के प्रतीक हैं।


भारत के वैज्ञानिक डॉ. नरेंद्र सिंह कपान्नी को "फाइबर ऑप्टिक्स के जनक" कहा जाता है। 1950 के दशक में उन्होंने प्रकाश को लचीली काँच की रेशों के माध्यम से स्थानांतरित करने का मार्ग प्रशस्त किया। आज इंटरनेट से लेकर चिकित्सा तक, उनकी इस खोज का महत्व अपार है।


अंततः, प्रकाश केवल एक भौतिक सत्ता नहीं है — यह जीवन का सार है। यह ज्ञान का प्रतीक है, सोच का विस्तार है, और भविष्य की दिशा दिखाने वाला प्रकाशस्तंभ है। आइए, इस प्रकाश दिवस पर हम सभी संकल्प लें कि हम न केवल अपने जीवन को, बल्कि अपने आसपास के वातावरण को भी रोशन करेंगे — ज्ञान से, प्रेम से, और उम्मीद से।


“तमसो मा ज्योतिर्गमय” — अंधकार से प्रकाश की ओर चलें।


बी. पी. सिंह,: भौतिकी विभाग, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (‘बीपीएस द एटॉमिक एक्सप्लोरर’ यूट्यूब चैनल के माध्यम से विज्ञान संचारकर्ता)

 
 
 

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